मंगलवार, 4 फ़रवरी 2020

वचपन

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वो अंजान सा बचपन ।
वो नादान सा बचपन ।

उम्र के कच्चे मकां में ,
वो मेहमान सा बचपन ।

 इस ज़िंदगी के सफ़र में ,
 एक पहचान सा बचपन ।

 खोजता ख़ुद को ख़यालों में ,
  रहा अहसान सा बचपन ।
 ...विवेक दुबे"निश्चल"@....
डायरी 7

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कलम चलती है शब्द जागते हैं।

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