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- राज़-ऐ-वक़्त ---
2122 , 12 12 ,22
दूर कितना रहा , ज़माने में ।
कर सफ़र मैं तन्हा,वीराने में ।
छूटता सा चला कहीं मैं ही ,
यूँ नया सा शहर ,बसाने में ।
ढूँढ़ती है नज़र निशां कोई ,
क्यूँ मुक़ा तक ,चलके आने में ।
खोजता ही रहा कमी गोई ,
नुक़्स मिलता नही ,फ़साने में ।
रोकता चाह राह के वास्ते ,
चाँद भी हिज़्र तले,ढल जाने में ।
जूझती है युं रूह उम्र सारी ,
जिंदगी के रिश्ते निभाने में ।
राज़ है वक़्त में छुपा कोई आज"निश्चल"मुझे,बनाने में ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@....
डायरी 7
रोकती चाह चाँद के वास्ते ,
चाँदनीं हिज़्र तले,ढल जाने में ।
छोड़ती राह चाँद के वास्ते ,
चाँदनी हिज़्र तले ढल जाने में ।
यूँ ही तुम मुझसे वात करते हो ।
- राज़-ऐ-वक़्त ---
2122 , 12 12 ,22
दूर कितना रहा , ज़माने में ।
कर सफ़र मैं तन्हा,वीराने में ।
छूटता सा चला कहीं मैं ही ,
यूँ नया सा शहर ,बसाने में ।
ढूँढ़ती है नज़र निशां कोई ,
क्यूँ मुक़ा तक ,चलके आने में ।
खोजता ही रहा कमी गोई ,
नुक़्स मिलता नही ,फ़साने में ।
रोकता चाह राह के वास्ते ,
चाँद भी हिज़्र तले,ढल जाने में ।
जूझती है युं रूह उम्र सारी ,
जिंदगी के रिश्ते निभाने में ।
राज़ है वक़्त में छुपा कोई आज"निश्चल"मुझे,बनाने में ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@....
डायरी 7
रोकती चाह चाँद के वास्ते ,
चाँदनीं हिज़्र तले,ढल जाने में ।
छोड़ती राह चाँद के वास्ते ,
चाँदनी हिज़्र तले ढल जाने में ।
यूँ ही तुम मुझसे वात करते हो ।
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