ज़ीवन के इस पड़ाव पर।
तिनको से बिखराब पर ।
ज़ख्म मिलते हर दिन नए,
कुछ अन सूखे घाव पर ।
चलती फिर नर्म हवा ,
बनता ज़ख्म दोहराब पर ।
सूख न पाया पिछला ही ,
मिलता नया जख़्म घाव पर ।
अभी ज़ख्म था नही भरा ,
मरहम लगाने के भाव पर ,
वो खुरच गए फिर ज़ख्म बही
दे गए ज़ख्म नया घाव पर ।
..... विवेक दुबे "निश्चल"@...
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