एक विश्वास ही आस है ।
वक़्त वक़्त के साथ है ।।
हँसता हूँ मैं अपने ही हालात से ।
कब तक लड़ूँ अपने ज़ज्बात से ।
हाथ उठते नही अब खैरात में ।
पाकर तंज अपनों के,
बहार हुआ अपनी ही जात से ।
मुझ पर तेरा अहसान सा है ।
तू मुझ अंजान को जानता सा है।
मानता हूँ दूरियाँ बहुत है मगर ,
दिल में तेरे मेरा अरमान सा है ।
चुप रहो ख़ामोश रहो ।
दोषी को निर्दोष कहो ।
असत्य सत्य जो जाए ,
सत्य कैसे तब सिद्ध करो ।
..... विवेक ....
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