धीर बनो गम्भीर बनो ।
सागर का तुम नीर बनो ।
लुटती हो मर्यादाएं जब जब ,
द्रोपती का तुम चीर बनो ।
देनी हो प्रेम प्यार की परिभाषा ,
तब तब राधा की पीर बनो ।
धीर बनो गंभीर बनो .....
आते सुख दुःख जब तब ,
सुख की न तासीर बनो ।
दुःख को भी अपना लो ,
सुख की न जागीर बनो ।
पीकर गरल हलाहल सारा ,
अमृत की तुम तासीर बनो ।
धीर बनो गंभीर बनो ,
सागर का तुम नीर बनो ।
..... विवेक "निश्चल"@......
सागर का तुम नीर बनो ।
लुटती हो मर्यादाएं जब जब ,
द्रोपती का तुम चीर बनो ।
देनी हो प्रेम प्यार की परिभाषा ,
तब तब राधा की पीर बनो ।
धीर बनो गंभीर बनो .....
आते सुख दुःख जब तब ,
सुख की न तासीर बनो ।
दुःख को भी अपना लो ,
सुख की न जागीर बनो ।
पीकर गरल हलाहल सारा ,
अमृत की तुम तासीर बनो ।
धीर बनो गंभीर बनो ,
सागर का तुम नीर बनो ।
..... विवेक "निश्चल"@......
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