सोमवार, 12 जून 2017

धीर बनो गम्भीर बनो

धीर बनो गम्भीर बनो ।
सागर का तुम नीर बनो ।
लुटती हो मर्यादाएं जब जब ,
द्रोपती का तुम चीर बनो ।
देनी हो प्रेम प्यार की परिभाषा ,
 तब तब राधा की पीर बनो ।
 धीर बनो गंभीर बनो ..... 
आते सुख दुःख जब तब ,
 सुख की न तासीर बनो ।
 दुःख को भी अपना लो ,
 सुख की न जागीर बनो ।
 पीकर गरल हलाहल सारा ,
 अमृत की तुम तासीर बनो ।
 धीर बनो गंभीर बनो ,
 सागर का तुम नीर बनो ।
   ..... विवेक "निश्चल"@......


कोई टिप्पणी नहीं:

कलम चलती है शब्द जागते हैं।

सम्मान पत्र

  मान मिला सम्मान मिला।  अपनो में स्थान मिला ।  खिली कलम कमल सी,  शब्दों को स्वाभिमान मिला। मेरी यूँ आदतें आदत बनती गई ।  शब्द जागते...