सोमवार, 17 जुलाई 2017

मेरा शहर

ज़ख्म आ मिले है अब मेरे शहर से ।
 दर्द जाते नही हैं अब मेरे शहर से ।

दहशत ही बाँकी है अब मेरे शहर में ।
 खो सा गया चैन है अब मेरे शहर से ।

नफ़रतों की अँधी है अब मेरे शहर में ।
रहतीं दूर खुशियाँ है अब मेरे शहर से। 

उजियारे आते नही हैं अब मेरे शहर में। 
अँधियारे जाते नही हैं अब मेरे शहर से।

  ..... विवेक दुबे "निश्चल"@.....





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