गुरुवार, 5 जुलाई 2018

सावन के ये बादल


मनहरण घनाक्षरी
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 सावन के ये बदल ,
 पिया मन भावन से ।
 छलकत रिम झिम  ,
  रस पिया मन से ।

थिरकन होंठो पर , 
मद है चितवन में ।
वो प्रणय निवेदन, 
 चाहत साजन से ।
  

 भींगी अंगिया तन पे , 
 दमका श्रृंगार सभी ,
  लरज़त है वा गोरी, 
 सखी ज्यों साजन से ।

 नैनन में आस जगी ,
आएंगे साजन मेरे
 अबकी जा सावन में , 
 ताप बुझे तन से ।
               
 .... विवेक दुबे"निश्चल"@...


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