शुक्रवार, 6 जुलाई 2018

निग़ाह राह ताकता

मनहरण घनाक्षरी
"""""""""""""""""

निग़ाह राह ताकता,
रहा वक़्त गुजारता ।
हँस सँग दुनियाँ के ,
दर्द मैं बिसारता ।

 जी कर खुशियों को भी ,
 खुशी रहा निहारता ।
 मैं एक दर्द के वास्ते ,
 खुशी को पुकारता  ।

बदलेगा आज कल ,
कल को क्यों पुकारता । 
बीत कर ही आज से ,
कल को निहारता ।

होगा आज कल फिर ,
आज क्यों कल टालता ।
रुका नही वक़्त कभी ,
 बात को दुलारता ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@...

कोई टिप्पणी नहीं:

कलम चलती है शब्द जागते हैं।

सम्मान पत्र

  मान मिला सम्मान मिला।  अपनो में स्थान मिला ।  खिली कलम कमल सी,  शब्दों को स्वाभिमान मिला। मेरी यूँ आदतें आदत बनती गई ।  शब्द जागते...