हमे भी वक़्त को यूँ बनाना पड़ा है।
हाथ सबसे हमें भी मिलाना पड़ा है।
छुपा कर रंज दिल में अपने सारे ।
सामने दुनियाँ के मुस्कुराना पड़ा है।
बाहर-ऐ-चमन सामने नहीं कोई ,
सूखे फूलों से गजरा सजाना पड़ा है ।
घटाएँ सावन की वो बरसी नहीं ,
निगाहों को सावन बनाना पड़ा है ।
हम सफ़र कोई नही राह में मेरा ,
रास्तों को हम सफ़र बताना पड़ा है।
क़ुसूर रहा नही कभी कोई मेरा ,
हर बार उसको मनाना पड़ा है ।
वो बुत न रहे निगाहों में दुनियाँ की ,
"निश्चल" को चलना सिखाना पड़ा है।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@...
Blog post 2/7/18
हाथ सबसे हमें भी मिलाना पड़ा है।
छुपा कर रंज दिल में अपने सारे ।
सामने दुनियाँ के मुस्कुराना पड़ा है।
बाहर-ऐ-चमन सामने नहीं कोई ,
सूखे फूलों से गजरा सजाना पड़ा है ।
घटाएँ सावन की वो बरसी नहीं ,
निगाहों को सावन बनाना पड़ा है ।
हम सफ़र कोई नही राह में मेरा ,
रास्तों को हम सफ़र बताना पड़ा है।
क़ुसूर रहा नही कभी कोई मेरा ,
हर बार उसको मनाना पड़ा है ।
वो बुत न रहे निगाहों में दुनियाँ की ,
"निश्चल" को चलना सिखाना पड़ा है।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@...
Blog post 2/7/18
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