गुरुवार, 8 नवंबर 2018

चलता है पथ अंगारों को लेकर

चलता है पथ अंगारों को लेकर ।
साथ अधूरे कुछ तारों को लेकर ।

गढ़ता है फिर दिनकर दिन को ,
आधे छूटे कुछ वादों को लेकर ।

सहज रहा है नव आशाओं को ,
अपने ही कुछ भारों के लेकर ।

जीत चला है पग पग पथ को ,
जीत तले कुछ हारों को लेकर ।

थकित नही ठहरा कुछ पल को ,
साँझ तले शीत सहारों को लेकर ।

चलना है बस एक नियति यही ,
अपने ताप तले विचारों को लेकर ।

चलता है पथ अंगारों को लेकर ।
साथ अधूरे कुछ तारों को लेकर ।

निश्चल" है फिर भी वो चलता है  ,

 धवल किरण श्रृंगारों को लेकर ।

.. विवेक दुबे"निश्चल"@...

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