चलता है पथ अंगारों को लेकर ।
साथ अधूरे कुछ तारों को लेकर ।
गढ़ता है फिर दिनकर दिन को ,
आधे छूटे कुछ वादों को लेकर ।
सहज रहा है नव आशाओं को ,
अपने ही कुछ भारों के लेकर ।
जीत चला है पग पग पथ को ,
जीत तले कुछ हारों को लेकर ।
थकित नही ठहरा कुछ पल को ,
साँझ तले शीत सहारों को लेकर ।
चलना है बस एक नियति यही ,
अपने ताप तले विचारों को लेकर ।
चलता है पथ अंगारों को लेकर ।
साथ अधूरे कुछ तारों को लेकर ।
निश्चल" है फिर भी वो चलता है ,
धवल किरण श्रृंगारों को लेकर ।
.. विवेक दुबे"निश्चल"@...
साथ अधूरे कुछ तारों को लेकर ।
गढ़ता है फिर दिनकर दिन को ,
आधे छूटे कुछ वादों को लेकर ।
सहज रहा है नव आशाओं को ,
अपने ही कुछ भारों के लेकर ।
जीत चला है पग पग पथ को ,
जीत तले कुछ हारों को लेकर ।
थकित नही ठहरा कुछ पल को ,
साँझ तले शीत सहारों को लेकर ।
चलना है बस एक नियति यही ,
अपने ताप तले विचारों को लेकर ।
चलता है पथ अंगारों को लेकर ।
साथ अधूरे कुछ तारों को लेकर ।
निश्चल" है फिर भी वो चलता है ,
धवल किरण श्रृंगारों को लेकर ।
.. विवेक दुबे"निश्चल"@...
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