नव वंदनवार लगाते रहे ।
स्वास्तिक द्वार सजाते रहे ।
दीप धरे कुछ द्वारे में ,
दृष्टि पसरे उजियारे रहे ।
नव जीवन की आशा में ,
बुझते दीप बने सहारे रहे ।
बीती गहन निशा धीरे से ,
उज्वल से कुछ भुनसारे रहे ।
प्रखर चेतना चेतन मन की ,
पर दीप तले अंधियारे रहे ।
... विवेक दुबे"निश्चल"@...
स्वास्तिक द्वार सजाते रहे ।
दीप धरे कुछ द्वारे में ,
दृष्टि पसरे उजियारे रहे ।
नव जीवन की आशा में ,
बुझते दीप बने सहारे रहे ।
बीती गहन निशा धीरे से ,
उज्वल से कुछ भुनसारे रहे ।
प्रखर चेतना चेतन मन की ,
पर दीप तले अंधियारे रहे ।
... विवेक दुबे"निश्चल"@...
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