बुधवार, 7 नवंबर 2018

दीप तलें अंधियारे रहे

नव वंदनवार लगाते रहे ।
स्वास्तिक द्वार सजाते रहे ।

दीप धरे कुछ द्वारे में ,
दृष्टि पसरे उजियारे रहे ।

नव जीवन की आशा में ,
बुझते दीप बने सहारे रहे ।

बीती गहन निशा धीरे से ,
उज्वल से कुछ भुनसारे रहे ।

प्रखर चेतना चेतन मन की ,
पर दीप तले अंधियारे रहे ।

... विवेक दुबे"निश्चल"@...

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