क्युं रिश्तों को अपना बनाते हो ।
क्युं दर्द अपना जुबां पर लाते हो ।
बे-वफ़ा रहे है मुसलसल रिश्ते ,
क्युं रिश्तों से वफ़ा दिखलाते हो ।
चलते तुम अपनी ही राह पर ,
चौराहों पर घुल मिल जाते हो ।
मिले आपस मे कुछ कदम को ,
कुछ साथ फिर ज़ुदा हो जाते हो ।
जाते तुम राह नई मंजिल को ,
तुम राह नई फिर कहलाते हो ।
नही मुक़म्मिल कभी कहीं कोई ,
मंजिल मंजिल रिश्ते गढ़ते जाते हो ।
छूट गया फ़िर पीछे कल को वो ,
आज मुक़ाम नया जो पा जाते हो ।
क्युं रिश्तों को अपना बनाते हो ।
क्युं दर्द अपना जुबां पर लाते हो ।
....विवेक दुबे"निश्चल"@...
क्युं दर्द अपना जुबां पर लाते हो ।
बे-वफ़ा रहे है मुसलसल रिश्ते ,
क्युं रिश्तों से वफ़ा दिखलाते हो ।
चलते तुम अपनी ही राह पर ,
चौराहों पर घुल मिल जाते हो ।
मिले आपस मे कुछ कदम को ,
कुछ साथ फिर ज़ुदा हो जाते हो ।
जाते तुम राह नई मंजिल को ,
तुम राह नई फिर कहलाते हो ।
नही मुक़म्मिल कभी कहीं कोई ,
मंजिल मंजिल रिश्ते गढ़ते जाते हो ।
छूट गया फ़िर पीछे कल को वो ,
आज मुक़ाम नया जो पा जाते हो ।
क्युं रिश्तों को अपना बनाते हो ।
क्युं दर्द अपना जुबां पर लाते हो ।
....विवेक दुबे"निश्चल"@...
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