गुरुवार, 8 नवंबर 2018

क्युं रिश्तों को अपना बनाते हो ।

क्युं रिश्तों को अपना बनाते हो ।
क्युं दर्द अपना जुबां पर लाते हो ।

बे-वफ़ा रहे है मुसलसल रिश्ते  ,
क्युं रिश्तों से वफ़ा दिखलाते हो ।

 चलते तुम अपनी ही राह पर ,
चौराहों पर घुल मिल जाते हो ।

 मिले आपस मे कुछ कदम को ,
 कुछ साथ फिर ज़ुदा हो जाते हो ।

जाते तुम राह नई मंजिल को ,
तुम राह नई फिर कहलाते हो ।

नही मुक़म्मिल कभी कहीं कोई ,
मंजिल मंजिल रिश्ते गढ़ते जाते हो ।

छूट गया फ़िर पीछे कल को वो ,
आज मुक़ाम नया जो पा जाते हो ।

क्युं रिश्तों को अपना बनाते हो ।
क्युं दर्द अपना जुबां पर लाते हो ।

....विवेक दुबे"निश्चल"@...

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