शुक्रवार, 9 नवंबर 2018

ठहर जरा

 ठहर जरा, इनायत का इतना करार है ।
 क्युं निग़ाहों को,निग़ाहों का इंतज़ार है ।

है सँग निग़ाह, संग सा सख्त जो ,
क्युं दिल को, उसका इख़्तियार है ।

जला है जो, मेरे वास्ते अंधेरों में ,
क्युं यही उसका, इश्क़ इक़रार है ।

सुखाता रहा , आब आँख में अपनी ,
क्युं करता नही ,दर्द अपना इज़हार है ।

चलता है जो, साथ सख़्त राहों पर ,
क्युं मंजिल का, वो भी तलबगार है ।

लिखता रहा , लफ्ज़ वास्ते जिसके,
क्युं सुनता,वो मुझे मेरे अशआर है ।(दोहे)

करती रही ,  बयां,हालात को सूरत  ,
"निश्चल" नही , चेहरा-ए-असरार है ।(रहस्मय)

... विवेक दुबे"निश्चल"@...




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