रविवार, 9 दिसंबर 2018

एक ठहरा हुआ असर सा






 एक ठहरा हुआ असर सा ।
 भागते से , इस शहर सा ।

 कुछ जीतने की चाहत में ,
 चाहतों पे , एक कहर सा ।

  वक़्त का कुछ कर्ज़  सा ।
  रहा कही क्यों फ़र्ज़  सा ।

  बदलता ही रहा हर घड़ी ,
  बस रहा इतना ही हर्ज़ सा

.... विवेक दुबे"निश्चल"@..
Blog post 9/12/18



कोई टिप्पणी नहीं:

कलम चलती है शब्द जागते हैं।

सम्मान पत्र

  मान मिला सम्मान मिला।  अपनो में स्थान मिला ।  खिली कलम कमल सी,  शब्दों को स्वाभिमान मिला। मेरी यूँ आदतें आदत बनती गई ।  शब्द जागते...