शुक्रवार, 10 अप्रैल 2020

लक्ष्य उसी ने बस पाया है ।

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लक्ष्य उसी ने बस पाया है ।
जो आगे आगे चल पाया है ।
 देखो हर भोर मुहाने पर ,
दिनकर ही पहले आया है ।

 निशि के आँचल में छुपने से पहले ,
 संध्या को भी ललचाया है ।
 जो चँदा आता कुछ चलकर ,
 सूरज का हम साया कहलाया है ।

लक्ष्य उसी ने बस पाया है ।
 आगे आगे जो चल पाया है ।

 पवन चली तरल बन के ,
 खुशबू का झोंका आया है ।
 मदमस्त मकरंद सुगंध भरा,
 वो फ़ूल बाद नजर आया है ।

 अंबर बून्द चली मिलने धरती को ,
 रजः कण ने श्रृंगार उठाया है ।
 है पोषित कण कण जिससे ,
 गर्भ धरा ने तो फिर पाया है ।

 लक्ष्य उसी ने बस पाया है ।
 आगे आगे जो चल पाया है ।

 ना सोच जरा तनिक विश्राम नही ,
 दिनकर तो हर दिन ही आया  है ।
  ठहर नही चलता चल राहों पर ,
  तूने खुद को क्यों बिसराया है ।

लक्ष्य उसी ने बस पाया है ।
जो आगे आगे चल पाया है ।
 देखो हर भोर मुहाने पर ,
दिनकर ही पहले आया है ।

.... विवेक दुबे"निश्चल"@.
डायरी 7
Blog post 10/4/20

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