न गलियों में थूंका न मीनारों से पत्थर फैका मैंने ।
न भद्दी भाषा बोली न नियमों को तोड़ा मैंने ।
जगमग जग में गहराये अंधियारों में ,
दीपों के उजियारे से, अँधियारे में देखा मैंने ।
......विवेक दुबे"निश्चल"@...
गुंजित कर दे आज गगन ,
इन वीरों के जयकारों से ।
जो जूझ रहे सतत निरन्तर,
प्रकृति के क्रूर प्रहारों से ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@...
कर्तव्य निष्ठा की पराकाष्ठा ।
नमन इस समर्पण भाव को ।
भारतमाता के सच्चे सपूत ।
जय हो जय हो शत शत नमन ।
न भद्दी भाषा बोली न नियमों को तोड़ा मैंने ।
जगमग जग में गहराये अंधियारों में ,
दीपों के उजियारे से, अँधियारे में देखा मैंने ।
......विवेक दुबे"निश्चल"@...
गुंजित कर दे आज गगन ,
इन वीरों के जयकारों से ।
जो जूझ रहे सतत निरन्तर,
प्रकृति के क्रूर प्रहारों से ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@...
कर्तव्य निष्ठा की पराकाष्ठा ।
नमन इस समर्पण भाव को ।
भारतमाता के सच्चे सपूत ।
जय हो जय हो शत शत नमन ।
3
झालर खनकी शंख गरजते ।
ढोल बजे कही तासे बजते ।
दिन रात लगे हैं जो सेवा में ,
उनका हम सम्मान सहजते ।
...विवेक दुबे"निश्चल"@....
बस अब इतना ही करो ना ।
सीमा में ही अपनी रहो ना ।
सिमट जाओ दायरे में अपने,
टूट जाये ये श्रृंखला कोरोना ।
लेकर साहस संकल्प हृदय से ,
सिवा प्रभु के किसी से डरो ना ।
.....विवेक दुबे"निश्चल"@...
छा रहा है कोरोना ।
अब कुछ करो-ना ।
न लगो गले किसी के,
आस पास अब रहो ना ।
...विवेक दुबे"निश्चल"@...
जान बचाने जो आये ,
उन पे पत्थर बरसाते है ।
बेक़सूर है हम फिर भी,
वो बेशर्म फ़रमाते है ।
...."निश्चल"@....
फ़र्क नही पड़ता,समस्या चाहे कितनी संगीन हो जाये ।
बे-असर है बो ,आसमां भले ही ज़मीन हो जाये ।
बो मुसलसल कायम है अपनी ही रूढ़ियों पर ,
संक्रमण से पीढित एक से भले तीन हो जायें ।
...."निश्चल"@....
आज इम्तेहान की घड़ी हमारी है ।
भूक लाचार निरीह की बेचारी है ।
बांटे हम सब कुछ थोड़ा थोड़ा ,
एक रोटी में से आधी तुम्हारी है ।
....विवेक दुबे"निश्चल"@....
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