शुक्रवार, 8 मई 2015

चलन ज़माने का


ज़माने का एक यह भी चलन देखा है
मयस्सर नही ढकने मिटटी को
बो कफन देखा है
बचपन बीन कर खता जिसको
बो जूठन देखा है
झांकता योवन फटे कपड़ो से
बो तन देखा है
यह भी है मेरा वतन
हाँ मैंने अपना वतन देखा है  
......विवेक....


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