शनिवार, 9 मई 2015

कल


सपनो की बात चली
यादो की गांठ खुली
फिर ताज़ा हुए बो बीते पल
जो अपने ही तो थे कल
केसे बीत गए बो पल
कहाँ गुम हुआ बो कल
सपनो ने भी आना छोड़ दिया
जब से उसने मुहँ मोड़ लिया
करके बहाना
कल आने का
अब तक न आये बो
कल कब आता है
अब यह उन्हें समझाए कोई
....विवेक..

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कलम चलती है शब्द जागते हैं।

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