शनिवार, 9 मई 2015

नए कर्ण धार


सत्ता ने बदला भेष
बचा नहीं कुछ शेष
क्रांति ही अब शेष
क्या यही गांधी सुभाष का देश ?
झुठो और मक्कारो को
तनिक भी नहीं क्लेश
राग अलापे बस अपना ही
समझा जैसे खुद ही सारा देश
निगल रहे भारत भूमि को
देखो बहरूपिये का भेष
कल नाचता था
कोई और जमूरा
आज नाचता मदारी
नया जमूरा
यह तो नाचे
पहले बाले से भी तेज़
यह मेरा भारत देश
हाँ यही है भारत देश
नमो नमो नमो नमो
..........विवेक.....

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