मंगलवार, 12 जनवरी 2016

तृष्णा मन की

 तृष्णा मन की आज,
 उजागर कर दी, नयनों ने ।
         सकल ब्रम्हांड सरीखी,
         झलकी इन नयनों से ।
.
 प्रारम्भ शून्य अंत शून्य है ,
     तुझमे ही रहना है ।
 बस तुझमे ही तो खोना है ।
.
  मिथ्या सब कुछ है यह ,
  जगत सपन सलोना है ।
         निकल शून्य से फिर,
         शून्य ही फिर होना है ।
        .....विवेक दुबे"निश्चल"@..



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