शनिवार, 16 जनवरी 2016

कभी गुलशन सी गुलज़ार ज़िंदगी

कभी गुलशन सी गुलज़ार ज़िंदगी ।
कभी लगती एक त्यौहार ज़िंदगी ।
कभी मुहँ मांगी मुराद ज़िंदगी ।
कभी आँसू से सरोबार ज़िंदगी ।
कभी गम का समन्दर ज़िंदगी ।
कभी अपनों का प्यार ज़िंदगी ।
कभी रिश्तों का दुलार ज़िंदगी ।
कभी रिश्तों की दुत्कार ज़िंदगी ।
एक यह भी ज़िंदगी ।
एक वो भी ज़िंदगी ।
एक आह ज़िंदगी ।
एक वाह ज़िंदगी ।
.....विवेक दुबे"निश्चल"@....
 

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कलम चलती है शब्द जागते हैं।

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