ओढ़ कर निकलता हूँ घर से
जिम्मेवारियों का कफ़न
यूं तो हमें भी खूब आता है
शायरी का यह फ़न
मज़बूर हूँ घर देखूं या
मुशायरे करूं
हमने अक़्सर शायरो को
फ़ांके करते देखा है
पैर में हैं टूटी चप्पल
कांधे पर एक थैला है
शायर कल भी अकेला था
वो तो आज भी अकेला है
पडतें है तब उसे बड़ी शान से
जब वो दुनियां को अलविदा बोला है
.....विवेक....®
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