देखो उस माटी को
उस फूलों की घाँटी को
देवो की उस थाती को
खिलते थे गुलशन कदम कदम
अब चलतीं गोलियां दन दन
उजड़ी बगिया सूने आँगन
बेघर हुए सारे ब्रम्हाण
आँखे मूंदे सारे दल
काठ की हांड़ी दाल चढ़ी
स्वार्थ की रोटी खूब पकी
अब न जागे फिर कब जागेंगे
क्या उनका हक़ दिलवा पाएंगे
तू फूल कमल तुझसे क्या चाहेंगे
वो वापस घर कब जायेंगे
....विवेक....
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