शनिवार, 11 अगस्त 2018

वंशस्थ छंद

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वंशस्थ छंद
 [ जगण   तगण   जगण   रगण ]
( 121     221    121    212 )

चला जहाँ हार गया वही कही ।
थमा यहाँ जीत गया तभी यही ।
बिसारते आप रहे सही नही ।
विखेरते गीत मिले सभी तभी ।

 निखारती प्रीत रही उकेरती ।
 सुधारती शब्द रही उभारती ।
पुकारते गीत रहे मुझे वहाँ ।
दुलारते छंद मिले मुझे जहाँ ।

.... विवेक दुबे"निश्चल"@...
डायरी 5

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