489
वंशस्थ छंद
[ जगण तगण जगण रगण ]
( 121 221 121 212 )
चला जहाँ हार गया वही कही ।
थमा यहाँ जीत गया तभी यही ।
बिसारते आप रहे सही नही ।
विखेरते गीत मिले सभी तभी ।
निखारती प्रीत रही उकेरती ।
सुधारती शब्द रही उभारती ।
पुकारते गीत रहे मुझे वहाँ ।
दुलारते छंद मिले मुझे जहाँ ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@...
डायरी 5
वंशस्थ छंद
[ जगण तगण जगण रगण ]
( 121 221 121 212 )
चला जहाँ हार गया वही कही ।
थमा यहाँ जीत गया तभी यही ।
बिसारते आप रहे सही नही ।
विखेरते गीत मिले सभी तभी ।
निखारती प्रीत रही उकेरती ।
सुधारती शब्द रही उभारती ।
पुकारते गीत रहे मुझे वहाँ ।
दुलारते छंद मिले मुझे जहाँ ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@...
डायरी 5
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें