द्रुतविलबिंत छंद
विधान
(111 211 211 212)
(नगण भगण भगण रगण)
रचित गीत रचे बिन ही रहे ।
सुनत गीत सुने बिन ही रहे ।
रच गए पर सोचत ही रहे ।
सुन गए पर देखत ही रहे ।
ठहर जा अब तू मन ये कहे ।
उतर जा अब तू वन ये कहे ।
निखर जा प्रण सा तन ये कहे ।
बिखर जा कण सा छन ये कहे ।
निखर ले अब साजन ये कहे ।
महक ले अब सावन ये कहे।
चहक ले अब ये मन ये कहे ।
सहज ले अब जीवन ये कहे ।
.. *विवेक दुबे"निश्चल"* @...
डायरी 5(76)
Blog post 8/8/18
विधान
(111 211 211 212)
(नगण भगण भगण रगण)
रचित गीत रचे बिन ही रहे ।
सुनत गीत सुने बिन ही रहे ।
रच गए पर सोचत ही रहे ।
सुन गए पर देखत ही रहे ।
ठहर जा अब तू मन ये कहे ।
उतर जा अब तू वन ये कहे ।
निखर जा प्रण सा तन ये कहे ।
बिखर जा कण सा छन ये कहे ।
निखर ले अब साजन ये कहे ।
महक ले अब सावन ये कहे।
चहक ले अब ये मन ये कहे ।
सहज ले अब जीवन ये कहे ।
.. *विवेक दुबे"निश्चल"* @...
डायरी 5(76)
Blog post 8/8/18
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