बुधवार, 8 अगस्त 2018

द्रुतविलबिंत छंद

द्रुतविलबिंत छंद

विधान
  (111  211   211   212)
(नगण  भगण  भगण  रगण)

   रचित गीत रचे बिन ही रहे ।
   सुनत गीत  सुने बिन ही रहे ।
   रच गए पर सोचत ही रहे ।
   सुन गए पर देखत ही रहे ।

 ठहर जा अब तू मन ये कहे ।
 उतर जा अब तू वन ये कहे ।
 निखर जा प्रण सा तन ये कहे ।
 बिखर जा कण सा छन ये कहे ।

  निखर ले अब साजन ये कहे ।
  महक ले अब सावन ये कहे।
  चहक ले अब ये मन ये कहे ।
  सहज ले अब जीवन ये कहे ।

 .. *विवेक दुबे"निश्चल"* @...
डायरी 5(76)
Blog post 8/8/18

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