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*द्रुता छंद*
विधान~ [रगण जगण सगण लघु गुरु ]
(212 121 112 1 2)
11 वर्ण, 4 चरण, यति 5-6 वर्णों पर
[दो-दो चरण समतुकांत]
जीव की प्रभा , सकल जो सदा ।
काल की अजा , अटल जो सदा ।
भाल है कला , अजर है सदा ।
आज है शिवा , अमर है सदा ।
...
याद है उसे , कब मिले तुझे ।
भूलता नही, शंकर कभी तुझे ।
मांगना नही , बिन दिए दिया ।
सोचता नही , बिन लिए दिया ।
जीव की प्रभा , सकल जो सदा ।
मांगना नही , बिन कहे दिया ।
सोचता नही , बिन गहे दिया ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@...
अजा/ कांति
मांगना नही, तु अपना दिया ।
भूल जा तु ,देकर कभी दिया ।
फैलता प्रकाश, जलता दिया ।
है दिया बहुत , उसने दिया ।
.... *विवेक दुबे"निश्चल"*@..
दायरी 3(76)
*द्रुता छंद*
विधान~ [रगण जगण सगण लघु गुरु ]
(212 121 112 1 2)
11 वर्ण, 4 चरण, यति 5-6 वर्णों पर
[दो-दो चरण समतुकांत]
जीव की प्रभा , सकल जो सदा ।
काल की अजा , अटल जो सदा ।
भाल है कला , अजर है सदा ।
आज है शिवा , अमर है सदा ।
...
याद है उसे , कब मिले तुझे ।
भूलता नही, शंकर कभी तुझे ।
मांगना नही , बिन दिए दिया ।
सोचता नही , बिन लिए दिया ।
जीव की प्रभा , सकल जो सदा ।
मांगना नही , बिन कहे दिया ।
सोचता नही , बिन गहे दिया ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@...
अजा/ कांति
मांगना नही, तु अपना दिया ।
भूल जा तु ,देकर कभी दिया ।
फैलता प्रकाश, जलता दिया ।
है दिया बहुत , उसने दिया ।
.... *विवेक दुबे"निश्चल"*@..
दायरी 3(76)
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