गुरुवार, 13 सितंबर 2018

मुक्तक 503/ 517

503
नफा नुक़सान देखते रहे ।
ज़िस्म तिलिस्म खेचते रहे । 
 रूह साँसे तोड़ती रहीं ,
 ज़िस्म रिवाज़ देखते रहे ।

...504
 मैं लिखता चला निग़ाह से ।
 जीत ना सका अपनी चाह से ।
 होता रहा ग़ुम लफ्ज़ लफ्ज़ ,
 गिरते रहे जो क़तरे निग़ाह से ।
...505

यूँ मेरा हुनर हारता रहा ,
मैं आज को बिसारता रहा ।
 रुसवा रहा जमाना मुझसे,
 निग़ाह निग़ाह निहारता रहा ।

... "निश्चल@"..

डायरी 3
506
काल के प्रहार से , कल हारता आज से ।
जीता न आज भी , काल के काल से ।
कर्म के मान से ,   टक़ता रहा भाल पे ।
देता रहा फ़ल , कल काल के काल से ।
..... विवेक दुबे"निश्चल"@..
507
तलाश को तलाशता आदमी ।
वक़्त को वक़्त से हारता आदमी ।
हारता जीतकर हालात से ,
हालात को सँवारता आदमी ।
... "निश्चल"@...
508
एक दिन तो याद कर लें ,
    उस सहोदरा को ।
 गिरते नैनन नीर में भी ,
जिसका हम होंसला हों ।
...
509
बून्द बून्द से मिल जाते है ।
 शब्द सर कंज खिल जाते हैं ।
 खिलकर निश्चल जल पर ,
 निष्छल भाव  लहराते है ।
 ... विवेक दुबे"निश्चल"@..
डायरी 3

510
111   211   211  212
खिल खिला कर छूट अश्रु चला ।
गिर धरा पर टूट अश्रु चला ।
तज दिए सुख नैनन छीर के ,
नयन बिछुड़ ज़ीवन खो चला ।
.... विवेक दुबे "निश्चल"@..
511
  मैं ना वक़्ता हूँ  ,ना ज्ञाता हूँ ।
 कुछ लिख ,ना लिख पता हूँ ।
  मैं बस इतना कह पता हूँ ,
  मैं बस शब्द शब्द प्यासा हूँ  ।
512
 जिंदगी का नाम ही मौज है । 
 उलझने को तो रोज रोज है ।
 डूबता क्यों इतना जिंदगी में,
 किनारा तो तेरा उस और है ।
--
513
चाहता था जीतना मैं वक़्त को ,
हारकर वक़्त से लफ्ज़ उभारा था ।
 इस वक़्त भी लफ्ज़ सहारा है ।
उस वक़्त भी लफ्ज़ सहारा था ।
.... 
... विवेक दुबे"निश्चल"@..
डायरी 3

 514
अंनत उजाले रोशनी से चले ।
गहन तम तले वो क्यों ढ़ले ।
 ये रिक्त सा व्योम भी ,
 आसरा बन ना मिल चले ।
.515
अंकुर फूटे छाया के ।
 कोंपल ऐसे माया के ।
 कोयल जैसे स्वर है ,
 देखो अब कागा के ।
..516
सत्य क्या है के कुछ नही ।
सही क्या है के कुछ नही ।
रहता हूँ मैं यूँ अजनबी सा ,
भुलाता हूँ के कुछ भी नही ।
... 517
 भरोसे पर ,भरोसा कर बैठा ।
  खुद को ,बे-भरोसा कर बैठा ।
  कहता रहा दिल की अपनी ,
   निग़ाह का पोसा कर बैठा ।

...विवेक दुबे"निश्चल"@..
डायरी 3

कोई टिप्पणी नहीं:

कलम चलती है शब्द जागते हैं।

सम्मान पत्र

  मान मिला सम्मान मिला।  अपनो में स्थान मिला ।  खिली कलम कमल सी,  शब्दों को स्वाभिमान मिला। मेरी यूँ आदतें आदत बनती गई ।  शब्द जागते...