518
चेहरों पे नही नूर सा ।
यह कैसा दस्तूर सा ।
पढ़ते ही रहे नज़्म को ,
अश्क़ भी था रहा दूर सा ।
...518/a
सफ़र से सफ़र का सफ़र ।
चलता रहा मुख़्तसर सफ़र।
खोजता रहा किनारों को ,
दरिया किनारों पर बहकर ।
.. 519
सबकी अपनी अपनी मर्ज़ी है ।
सबका अपना अपना सौदा है ।
वो भी उनका एक मसौदा था ,
यह भी इनका एक मसौदा है।
... 521
बांट दी गर अगर जरा की खुशी जरा ।
क्या कम हुआ तू जरा बता मुझे जरा ।
कहता रहा ग़जल महफ़िल में बैठकर ,
क्युं हर शख्स मुझसे बे-खबर बता जरा ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@....
डायरी 3
522
रिक्त हृदय तप्त धरा सा ।
नैनन सावन बिखरा सा ।
शांत सरोवर "निश्चल" मन
जल अंबुज छितरा सा ।
... 523
तू खुद को गढ़ कुछ ऐसा ।
ना हो कुछ ऐसा ना वैसा ।
पथ नाप रहा कदम कदम ,
दूर क्षितिज कोना फिर कैसा ।
.. 524
मुक़ाम से मुक़ाम तक ।
नही कहीं विश्राम तक ।
चाह नही सितारों की ,
सफ़र बस आसमान तक ।
...525
सम्हालते रहे हाल से, हालात को ।
जज़्ब कर निग़ाह से ,हर बात को ।
दिल हसरत-ऐ-उजाले लिए हुए ,
भुलाते रहे हम, हर गुजरी रात को ।
... विवेक दुबे"निश्चल"@...
डायरी 3
526
अहंकार की हार है ।
भले नही प्रतिकार है ।
गिरा वो पाषाण धरा ही ,
बड़ी जोर दिया उछार है ।
....527
हम कुछ नए नारे फिर गढ़ लेंगे ।
हर नाकामी को उनके सर मढ़ देंगे ।
मांगेंगे हिसाब अभी तो उनसे ही ,
अपना हिसाब जब देंगे तब देंगे।
... 528
इश्क़ का कुछ यूँ मसौदा है ।
के यह ताउम्र का सौदा है ।
उसे पा जाने की चाहत में ,
खुद ने खुद को खोजा है ।
...(सूफ़ियाना अंदाज)
डायरी 3
ईस्वर (मेहबूब)
529
तप्त हृदय का सोम है ।
मेरे मेहबूब सा कौन है ।
समाया मन मंदिर भीतर,
देखता मन, दृष्टि मौन है ।
.530
वो मेहबूब का मेहबूब है ।
वो यूँ ही नही मशहूर है ।
धड़कता रूह सा ज़िस्म में,
वो नहीं कभी पल को दूर है ।
...विवेक दुबे"निश्चल"@..
डायरी 3
चेहरों पे नही नूर सा ।
यह कैसा दस्तूर सा ।
पढ़ते ही रहे नज़्म को ,
अश्क़ भी था रहा दूर सा ।
...518/a
सफ़र से सफ़र का सफ़र ।
चलता रहा मुख़्तसर सफ़र।
खोजता रहा किनारों को ,
दरिया किनारों पर बहकर ।
.. 519
सबकी अपनी अपनी मर्ज़ी है ।
सबका अपना अपना सौदा है ।
वो भी उनका एक मसौदा था ,
यह भी इनका एक मसौदा है।
... 521
बांट दी गर अगर जरा की खुशी जरा ।
क्या कम हुआ तू जरा बता मुझे जरा ।
कहता रहा ग़जल महफ़िल में बैठकर ,
क्युं हर शख्स मुझसे बे-खबर बता जरा ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@....
डायरी 3
522
रिक्त हृदय तप्त धरा सा ।
नैनन सावन बिखरा सा ।
शांत सरोवर "निश्चल" मन
जल अंबुज छितरा सा ।
... 523
तू खुद को गढ़ कुछ ऐसा ।
ना हो कुछ ऐसा ना वैसा ।
पथ नाप रहा कदम कदम ,
दूर क्षितिज कोना फिर कैसा ।
.. 524
मुक़ाम से मुक़ाम तक ।
नही कहीं विश्राम तक ।
चाह नही सितारों की ,
सफ़र बस आसमान तक ।
...525
सम्हालते रहे हाल से, हालात को ।
जज़्ब कर निग़ाह से ,हर बात को ।
दिल हसरत-ऐ-उजाले लिए हुए ,
भुलाते रहे हम, हर गुजरी रात को ।
... विवेक दुबे"निश्चल"@...
डायरी 3
526
अहंकार की हार है ।
भले नही प्रतिकार है ।
गिरा वो पाषाण धरा ही ,
बड़ी जोर दिया उछार है ।
....527
हम कुछ नए नारे फिर गढ़ लेंगे ।
हर नाकामी को उनके सर मढ़ देंगे ।
मांगेंगे हिसाब अभी तो उनसे ही ,
अपना हिसाब जब देंगे तब देंगे।
... 528
इश्क़ का कुछ यूँ मसौदा है ।
के यह ताउम्र का सौदा है ।
उसे पा जाने की चाहत में ,
खुद ने खुद को खोजा है ।
...(सूफ़ियाना अंदाज)
डायरी 3
ईस्वर (मेहबूब)
529
तप्त हृदय का सोम है ।
मेरे मेहबूब सा कौन है ।
समाया मन मंदिर भीतर,
देखता मन, दृष्टि मौन है ।
.530
वो मेहबूब का मेहबूब है ।
वो यूँ ही नही मशहूर है ।
धड़कता रूह सा ज़िस्म में,
वो नहीं कभी पल को दूर है ।
...विवेक दुबे"निश्चल"@..
डायरी 3
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