शनिवार, 15 सितंबर 2018

छुपता रहा छुपाता रहा

छुपता रहा , छुपाता रहा ।
आज को युं, बचाता रहा ।
 लगा मुखोटा खुशियों का ,
 हाल अपना दिखता रहा ।

 आता रहा जाता रहा ।
 आब को मिलाता रहा ।
 समंदर से दरिया का ,
 बस इतना नाता रहा ।

 खिलता रहा झडता रहा ।
 उजड़ता रहा बसता रहा ।
 बदलता रहा बागवां भी,
 और गुलशन पलता रहा ।

.... विवेक दुबे"निश्चल"@..

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कलम चलती है शब्द जागते हैं।

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