मंगलवार, 2 अक्तूबर 2018

आदमी

आदमी को मारता आदमी ।
बेमौसम बहार सा आदमी ।
 दोष होना नही है लाज़मी ,
 चढ़ता बलि निर्दोष आदमी ।
...
कैसा आया आज सबेरा है।
दिन का अंधियारा गहरा है ।
 हर रहा आज प्राण वही ,
 रहता जिसका पहरा है ।
...
Up पुलिस बर्बरता पर दो शब्द

डायरी 5(160)

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कलम चलती है शब्द जागते हैं।

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