शनिवार, 6 अक्तूबर 2018

काव्या मेरी बिटिया की रचना

अभी पार नही की थी दहलीज़ ।
अंकुरित हो उठे अश्रु के बीज।
कुछ ना कह पाई मैं आज ।
बहाव में बह गई बस आज ।

सीने से लगा लिया एक बार ।
कठोरता की फिर हो गई हार ।

ममता लिए नयन झील हुए पार।
पिघला दिया ममता ने ज़ार- ज़ार।

हुआ सा था कुछ महसूस  ।
उसकी ममता और सूझबूझ।

सदैव स्पष्ट रहेगी वो छवि ।
 कुछ शब्द जी उठे सभी ।

 महसूस हुई एक और पीर ।
अटके गले में अपने ही नीर ।

मुश्किल से किया उसे आज़ाद ।
 रख ली उसने ममता की लाज।

..... "काव्या"@...

कोई टिप्पणी नहीं:

कलम चलती है शब्द जागते हैं।

सम्मान पत्र

  मान मिला सम्मान मिला।  अपनो में स्थान मिला ।  खिली कलम कमल सी,  शब्दों को स्वाभिमान मिला। मेरी यूँ आदतें आदत बनती गई ।  शब्द जागते...