यह ख्याल रहे ख़्याल से ।
अक़्स ढ़लते रहे निग़ाह से ।
खोजते रहे रौनकें जमाने में,
फिर भी तंग दिल रहे हाल से ।
एक उम्र गुजरती है ,
पलकों की पोर से ।
ज़ज्बात पिरोती है ,
अश्कों की डोर से ।
साँझ तले टूटते ख़्वाब है,
साथ चले थे जो भोर से ।
तिलिस्म सा ही रहा है ,
खींचता कोई छोर से ।
नाकाफी रहा साज-ए-नज़्म,
"निश्चल" चला दूर शोर से ।
...... विवेक दुबे"निश्चल"@..
डायरी 5(158)
अक़्स ढ़लते रहे निग़ाह से ।
खोजते रहे रौनकें जमाने में,
फिर भी तंग दिल रहे हाल से ।
एक उम्र गुजरती है ,
पलकों की पोर से ।
ज़ज्बात पिरोती है ,
अश्कों की डोर से ।
साँझ तले टूटते ख़्वाब है,
साथ चले थे जो भोर से ।
तिलिस्म सा ही रहा है ,
खींचता कोई छोर से ।
नाकाफी रहा साज-ए-नज़्म,
"निश्चल" चला दूर शोर से ।
...... विवेक दुबे"निश्चल"@..
डायरी 5(158)
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