एक भृम वहम पलता रहा ।
पिघलता चाँद ढलता रहा ।
ओढ़कर चूनर सितारों की,
रात भर चाँद चलता रहा ।
उतरेगी शबनम जमीं पर ,
ख़्याल दिल पलता रहा ।
अपने डूबने के इरादे लिये ,
चलता दिनकर जलता रहा ।
आया न लौटकर फिर कभी ,
समय समय को छलता रहा ।
लौट आऊँगा फिर महफील में ,
जज्वा ज़िगर मचलता रहा ।
गुजरता रहा राह जिंदगी पर ,
"निश्चल" गिरकर सम्हलता रहा ।
....विवेक दुबे"निश्चल"@...
डायरी 6(45)
पिघलता चाँद ढलता रहा ।
ओढ़कर चूनर सितारों की,
रात भर चाँद चलता रहा ।
उतरेगी शबनम जमीं पर ,
ख़्याल दिल पलता रहा ।
अपने डूबने के इरादे लिये ,
चलता दिनकर जलता रहा ।
आया न लौटकर फिर कभी ,
समय समय को छलता रहा ।
लौट आऊँगा फिर महफील में ,
जज्वा ज़िगर मचलता रहा ।
गुजरता रहा राह जिंदगी पर ,
"निश्चल" गिरकर सम्हलता रहा ।
....विवेक दुबे"निश्चल"@...
डायरी 6(45)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें