हारते नही जो हालात से ।
चलते है अपने विश्वास से ।
आते है कल को जीतकर ,
संघर्ष करने वो आज से ।
छूने को फिर साँझ सुहानी ,
पग उठते चलते पथ पाथ से ।
होगी फिर भोर सजानी ,
हुंकार भरें प्रण साँस से ।
लक्ष्य यही कोई लक्ष्य नही ,
पग उठे जब कर्म साध के ।
एक भाव यही स-कर्म रहें ,
सुफ़ल रहे कर्ता के हाथ के ।
----
भरकर फिर नव आशा से ,
उबर कर घोर निराशा से ।
आते है दिनकर से फिर दिन को ,
"निश्चल"मिलने साँझ पिपासा से ।
... विवेक दुबे"निश्चल"@...
डायरी 6(50)
चलते है अपने विश्वास से ।
आते है कल को जीतकर ,
संघर्ष करने वो आज से ।
छूने को फिर साँझ सुहानी ,
पग उठते चलते पथ पाथ से ।
होगी फिर भोर सजानी ,
हुंकार भरें प्रण साँस से ।
लक्ष्य यही कोई लक्ष्य नही ,
पग उठे जब कर्म साध के ।
एक भाव यही स-कर्म रहें ,
सुफ़ल रहे कर्ता के हाथ के ।
----
भरकर फिर नव आशा से ,
उबर कर घोर निराशा से ।
आते है दिनकर से फिर दिन को ,
"निश्चल"मिलने साँझ पिपासा से ।
... विवेक दुबे"निश्चल"@...
डायरी 6(50)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें