शनिवार, 1 दिसंबर 2018

हारते नही जो हालात से ।

हारते नही जो हालात से ।
चलते है अपने विश्वास से ।

आते है कल को जीतकर  ,
संघर्ष करने वो आज से ।

छूने को फिर साँझ सुहानी ,
पग उठते चलते पथ पाथ से ।

होगी फिर भोर सजानी ,
हुंकार भरें प्रण साँस से ।

लक्ष्य यही कोई लक्ष्य नही ,
पग उठे जब कर्म साध के ।

एक भाव यही स-कर्म रहें ,
 सुफ़ल रहे कर्ता के हाथ के ।

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 भरकर फिर नव आशा से ,
 उबर कर घोर निराशा से ।

 आते है दिनकर से फिर दिन को ,
"निश्चल"मिलने साँझ पिपासा से ।

... विवेक दुबे"निश्चल"@...
डायरी 6(50)

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