बुधवार, 28 नवंबर 2018

चित कैसा चिंतन सा ।

चित का चिंतन कैसा ।
मन का मंथन कैसा ।

अर्थो की उलझन में ,
भावों का बंधन कैसा ।

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चित कैसा चिंतन सा ।
मन कैसा मंथन सा ।

अर्थो की उलझन में ,
भाव रहा बंधन सा ।
..... 
आधा रहा  जिंदा सा ।
अहमं लिए शर्मिंदा सा ।

भोग रही सुख को काया ,
मन भाव लिए निंदा सा ।
...
पिसकर कदम तले ,
खेह उड़े गुलाल सा ।

रच कर कण कण में ,
करता मन श्रृंगार सा ।
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चलता रहा सड़क पर ,
कच्चा रस्ता छूटा सा ।

मिटता रहा मुखोटों पर ,
सच्चा रिश्ता टूटा सा ।
.....

मैं "निश्चल" रहा पर मगर , 
सफ़र जिंदगी चलता सा ।

अपने आपको बदलकर ,
हालात को बदलता सा ।

..विवेक दुबे"निश्चल"@...
डायरी 6(44)

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