चित का चिंतन कैसा ।
मन का मंथन कैसा ।
अर्थो की उलझन में ,
भावों का बंधन कैसा ।
..... =====.....
चित कैसा चिंतन सा ।
मन कैसा मंथन सा ।
अर्थो की उलझन में ,
भाव रहा बंधन सा ।
.....
आधा रहा जिंदा सा ।
अहमं लिए शर्मिंदा सा ।
भोग रही सुख को काया ,
मन भाव लिए निंदा सा ।
...
पिसकर कदम तले ,
खेह उड़े गुलाल सा ।
रच कर कण कण में ,
करता मन श्रृंगार सा ।
........
चलता रहा सड़क पर ,
कच्चा रस्ता छूटा सा ।
मिटता रहा मुखोटों पर ,
सच्चा रिश्ता टूटा सा ।
.....
मैं "निश्चल" रहा पर मगर ,
सफ़र जिंदगी चलता सा ।
अपने आपको बदलकर ,
हालात को बदलता सा ।
..विवेक दुबे"निश्चल"@...
डायरी 6(44)
मन का मंथन कैसा ।
अर्थो की उलझन में ,
भावों का बंधन कैसा ।
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चित कैसा चिंतन सा ।
मन कैसा मंथन सा ।
अर्थो की उलझन में ,
भाव रहा बंधन सा ।
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आधा रहा जिंदा सा ।
अहमं लिए शर्मिंदा सा ।
भोग रही सुख को काया ,
मन भाव लिए निंदा सा ।
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पिसकर कदम तले ,
खेह उड़े गुलाल सा ।
रच कर कण कण में ,
करता मन श्रृंगार सा ।
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चलता रहा सड़क पर ,
कच्चा रस्ता छूटा सा ।
मिटता रहा मुखोटों पर ,
सच्चा रिश्ता टूटा सा ।
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मैं "निश्चल" रहा पर मगर ,
सफ़र जिंदगी चलता सा ।
अपने आपको बदलकर ,
हालात को बदलता सा ।
..विवेक दुबे"निश्चल"@...
डायरी 6(44)
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