आज चलो एक दीप जलाते हैं ।
तम अन्तर्मन आज मिटाते है ।
दीप्त करें स्वयं स्वयं को ,
स्व-कान्ति स्वयं जागते है ।
रिक्त रहे न मन कोना कोई ,
मन कण कण दमकाते हैं ।
स्वयं चेतन रश्मि से ,
अहम अंधकार मिटाते हैं ।
आज चलो एक दीप जलाते हैं ।
तम अन्तर्मन आज मिटाते है ।
.... विवेक दुबे" निश्चल"@...
उजर रहा मन मन के आंगे ।
मन दीप उजारे तम के आंगे ।
रिक्त हुआ व्योम सभी तब ,
खोल दिए जब मन के द्वारे ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@..
डायरी 5(185)
तम अन्तर्मन आज मिटाते है ।
दीप्त करें स्वयं स्वयं को ,
स्व-कान्ति स्वयं जागते है ।
रिक्त रहे न मन कोना कोई ,
मन कण कण दमकाते हैं ।
स्वयं चेतन रश्मि से ,
अहम अंधकार मिटाते हैं ।
आज चलो एक दीप जलाते हैं ।
तम अन्तर्मन आज मिटाते है ।
.... विवेक दुबे" निश्चल"@...
उजर रहा मन मन के आंगे ।
मन दीप उजारे तम के आंगे ।
रिक्त हुआ व्योम सभी तब ,
खोल दिए जब मन के द्वारे ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@..
डायरी 5(185)
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