शुक्रवार, 1 मार्च 2019

ओ राजनीति के रणकारों ।

ओ राजनीति के रणकारों ।
 ओ सत्ता के फनकारों ।

भारत माता के बेटों की ,
 कब तक बलि चढ़ाओगे ।

 मातृ भूमि के  लालों पर ,
 घात पे घात कराओगे ।

  अफ़सोस न हीं कोई पछतावा ।
  बस घड़ियाली आँसू बहाओगे ।

  पठानकोट उरी अब पुलवामा ।
  कितनी बहनों का सुहाग छुड़ाओगे ।

ओ राजनीति के राणकारों ।
 ओ सत्ता के फनकारों ।

  बातों को अब विश्राम धरो ।
  अब तो सीधा संग्राम करो ।

  छुरा घोंपते जो छुप छुप कर ,
  घर में घुसकर उनका संहार करो ।

न रहें जड़ें जमीं भीतर तक ,
जड़ पर ही अब बार करो ।

जयचंद डटे जो घर भीतर ,
उनको पहले बेघर बेकार करो ।

ख़त्म करो तुम 370 को  ,
देव भूमि को साथ करो ।

एक देश एक नियम चले ,
समान संहिता की बात करो ।

आजाद वतन की आजादी से,
अब न कोई मज़ाक करो ।

ओ राजनीति के राणकारों ।
 ओ सत्ता के फनकारों ।

अब तो बस प्रतिकार करो ।
खड़क भवानी पे धार धरो ।

अचूक निशाना हो जिसका ,
ऐसा अब हर प्रहार करो ।

न स्वागत न सत्कार करो ।
 अब तो बस संहार करो ।

 बहुत हुआ खेल आँख मिचौली का ,
 शत्रु से अब सीधा ही संग्राम करो। 

 इन कूटनीति के वादों पे ,
 इन उलझे आधे से वादों पे ।

 अब तनिक नहीं विश्वास करो ,
 शत्रु से अब सीधा ही संग्राम करो ।

 कब तक गिनते गिनवाते जाओगे,
एक के बदले दस दस लाओगे ।

 नाम रहे न विश्व पटल पर ,
 अब ऐसा कोई इंतज़ाम करो ।

  पा सम्पूर्ण विजय विश्राम करो ,
 शत्रु से अब सीधा ही संग्राम करो।

नही तनिक भी मेरी परवाह करो ।
करो करो बस शत्रु का संहार करो ।

 शत्रु आ छुपे जब मेरे पीछे तब ,
तुम पहले मुझ पर ही प्रहार करो ।



   .... विवेक दुबे"निश्चल"@...
डायरी 6(119)

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