आज़ाद वतन की आज़ादी में ।
आधी सी इस आवादी में ।
बैर धुले है मज़हब के ,
बंट गए कुछ जाती में ।
लिप्त हुए है यूँ सब ,
अपनी ही आज़ादी में ।
रंग उड़े है गुलशन के ,
चलती गोली वादी में ।
ताल ठोकते है कुछ ,
सत्ता की पहरेदारी में ।
जहर उगलते नित जो ,
अपनी ही मुंसिफ़ दारी में ।
रहा नही क्यों , देश प्रेम अब उनमें ,
सजे हुए जो ,परिधानों के खादी में ।
लुप्त हुई आज़ादी अब क्यो ,
आजाद भगत गांधी बलिदानी में ।
... विवेक दुबे"निश्चल"@...
डायरी 6(125)
आधी सी इस आवादी में ।
बैर धुले है मज़हब के ,
बंट गए कुछ जाती में ।
लिप्त हुए है यूँ सब ,
अपनी ही आज़ादी में ।
रंग उड़े है गुलशन के ,
चलती गोली वादी में ।
ताल ठोकते है कुछ ,
सत्ता की पहरेदारी में ।
जहर उगलते नित जो ,
अपनी ही मुंसिफ़ दारी में ।
रहा नही क्यों , देश प्रेम अब उनमें ,
सजे हुए जो ,परिधानों के खादी में ।
लुप्त हुई आज़ादी अब क्यो ,
आजाद भगत गांधी बलिदानी में ।
... विवेक दुबे"निश्चल"@...
डायरी 6(125)
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