शुक्रवार, 1 मार्च 2019

आधी सी इस आवादी में ।

आज़ाद वतन की आज़ादी में ।
 आधी सी इस आवादी में ।

 बैर धुले है मज़हब के ,
 बंट गए कुछ जाती में ।

 लिप्त हुए है यूँ सब ,
अपनी ही आज़ादी में ।

 रंग उड़े है गुलशन के ,
 चलती गोली वादी में ।

ताल ठोकते है कुछ ,
सत्ता की पहरेदारी में ।

 जहर उगलते नित जो ,
 अपनी ही मुंसिफ़ दारी में ।

 रहा नही क्यों , देश प्रेम अब उनमें ,
 सजे हुए जो ,परिधानों के खादी में ।

   लुप्त हुई आज़ादी अब क्यो ,
  आजाद भगत गांधी बलिदानी में ।

... विवेक दुबे"निश्चल"@...

डायरी 6(125)

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