घर जले चिंगारियों से ,
चराग़ थे नही आफतों के लिए ।
निग़ाह दोस्ती थी कभी ,
सामने थे खड़े नफरतों के लिए ।
वक़्त सा चलता रहा ,
हर वक़्त वक़्त के अहसास से ,
सफ़र रहा तारीखों सा ,
मोहताज से रहे शोहरतों के लिए ।
एक बिसात जिंदगी की ,
हर चाल शेह और मात सी ,
हार में जश्न जीत का,
मनाते ही चले दौलतों के लिए ।
"निश्चल"चले शिद्दत से ,
इस सफ़र-ए-जिंदगी पर ,
न पाए चैन कभी ,
तरसते मिले मोहलतों के लिए ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@..
डायरी 6 (121)
चराग़ थे नही आफतों के लिए ।
निग़ाह दोस्ती थी कभी ,
सामने थे खड़े नफरतों के लिए ।
वक़्त सा चलता रहा ,
हर वक़्त वक़्त के अहसास से ,
सफ़र रहा तारीखों सा ,
मोहताज से रहे शोहरतों के लिए ।
एक बिसात जिंदगी की ,
हर चाल शेह और मात सी ,
हार में जश्न जीत का,
मनाते ही चले दौलतों के लिए ।
"निश्चल"चले शिद्दत से ,
इस सफ़र-ए-जिंदगी पर ,
न पाए चैन कभी ,
तरसते मिले मोहलतों के लिए ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@..
डायरी 6 (121)
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