शुक्रवार, 1 मार्च 2019

एक अंदाज़ सूफ़ियाना सा ।

 एक अंदाज़ सूफ़ियाना सा ।
 ये जिंदगी एक ठिकाना सा ।

कह गया अल्फाज़ खामोशी से ,
आया नही जुबां गुनगुनाना सा ।

 गीत हो या हो ये ग़जल मेरी ,
 लफ्ज़ लफ्ज़ रहा बेगाना सा ।

चाहत-ऐ-ज़िंदगी की डगर पर ,
अनजान भी मिला पहचाना सा ।

स्याह रात साथ लिए सितारों का,
भोर तलक ढ़ले मिले सुहाना सा ।

चलता रहा सफ़र सफर के वास्ते,
"निश्चल" चला तन्हा दीवाना सा ।

.... विवेक दुबे"निश्चल@".....
डायरी 6(124)

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