शुक्रवार, 1 मार्च 2019

मुझे समझने के लिए, फ़िकर चाहिए ।

मुझे समझने के लिए, फ़िकर चाहिए ।
निग़ाह नज़्र में ,  आब जिकर चाहिए ।

ख़बर को ख़बर की ख़बर चाहिए।
असर को असर का असर चाहिए ।

न समझ हो कुछ , समझने के लिए , 
फक़त दिल,इतना ही असर चाहिए ।

टूटे नही होंसले ये कभी चलते चलते  ,
मंजिल का रास्तों पे जिकर चाहिए ।

दर्द मेरे दिल का , निग़ाह में नजर चाहिए।
शाम-ए-महफ़िल में,मेरा भी जिकर चाहिए ।
...
ग़ुम हुए साये भी यहाँ इस कदर ।
पराया सा लगता है अपना शहर ।

है नही आब आँख में अब कोई ,
बेअसर सा हुआ हर निग़ाह असर ।
..
कुछ हम यूँ उनके हवाले रहे ।
निग़ाह नुक़्स निकाले न गए ।

 दुआओं के असर उस नज़्र में ,
 इल्म ताबीज़ गले डाले न गए ।
...
 डूबता रहा उभरता सा रहा है ।
 दरिया का इतना असर रहा है । 

 रातें थी       सितारों से  सजी ,
 नाम चाँद के सफऱ सा रहा है।
...
   शब्द किताबों में होते हैं ।
    शब्दों में असर होते हैं ।

    जागते है शब्द सदा ,
     नही शब्द नही सोते है ।

     .. विवेक दुबे"निश्चल" @.
डायरी 6(122)a

कोई टिप्पणी नहीं:

कलम चलती है शब्द जागते हैं।

सम्मान पत्र

  मान मिला सम्मान मिला।  अपनो में स्थान मिला ।  खिली कलम कमल सी,  शब्दों को स्वाभिमान मिला। मेरी यूँ आदतें आदत बनती गई ।  शब्द जागते...