मुझे समझने के लिए, फ़िकर चाहिए ।
निग़ाह नज़्र में , आब जिकर चाहिए ।
ख़बर को ख़बर की ख़बर चाहिए।
असर को असर का असर चाहिए ।
न समझ हो कुछ , समझने के लिए ,
फक़त दिल,इतना ही असर चाहिए ।
टूटे नही होंसले ये कभी चलते चलते ,
मंजिल का रास्तों पे जिकर चाहिए ।
दर्द मेरे दिल का , निग़ाह में नजर चाहिए।
शाम-ए-महफ़िल में,मेरा भी जिकर चाहिए ।
...
ग़ुम हुए साये भी यहाँ इस कदर ।
पराया सा लगता है अपना शहर ।
है नही आब आँख में अब कोई ,
बेअसर सा हुआ हर निग़ाह असर ।
..
कुछ हम यूँ उनके हवाले रहे ।
निग़ाह नुक़्स निकाले न गए ।
दुआओं के असर उस नज़्र में ,
इल्म ताबीज़ गले डाले न गए ।
...
डूबता रहा उभरता सा रहा है ।
दरिया का इतना असर रहा है ।
रातें थी सितारों से सजी ,
नाम चाँद के सफऱ सा रहा है।
...
शब्द किताबों में होते हैं ।
शब्दों में असर होते हैं ।
जागते है शब्द सदा ,
नही शब्द नही सोते है ।
.. विवेक दुबे"निश्चल" @.
डायरी 6(122)a
निग़ाह नज़्र में , आब जिकर चाहिए ।
ख़बर को ख़बर की ख़बर चाहिए।
असर को असर का असर चाहिए ।
न समझ हो कुछ , समझने के लिए ,
फक़त दिल,इतना ही असर चाहिए ।
टूटे नही होंसले ये कभी चलते चलते ,
मंजिल का रास्तों पे जिकर चाहिए ।
दर्द मेरे दिल का , निग़ाह में नजर चाहिए।
शाम-ए-महफ़िल में,मेरा भी जिकर चाहिए ।
...
ग़ुम हुए साये भी यहाँ इस कदर ।
पराया सा लगता है अपना शहर ।
है नही आब आँख में अब कोई ,
बेअसर सा हुआ हर निग़ाह असर ।
..
कुछ हम यूँ उनके हवाले रहे ।
निग़ाह नुक़्स निकाले न गए ।
दुआओं के असर उस नज़्र में ,
इल्म ताबीज़ गले डाले न गए ।
...
डूबता रहा उभरता सा रहा है ।
दरिया का इतना असर रहा है ।
रातें थी सितारों से सजी ,
नाम चाँद के सफऱ सा रहा है।
...
शब्द किताबों में होते हैं ।
शब्दों में असर होते हैं ।
जागते है शब्द सदा ,
नही शब्द नही सोते है ।
.. विवेक दुबे"निश्चल" @.
डायरी 6(122)a
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