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कुछ इस तरह मुझे ,
शोहरत मिलती रही ।
मेरी वफ़ाओं की मुझे,
तोहमत मिलती रही ।
चलता ही रहा सफ़र ,
मंजिल के वास्ते ,
वक़्त से इस तरह ,
मोहलत मिलती रही ।
गुजरता रहा कारवां ,
राह-ऐ-ज़िंदगी में ,
अपनो से अपनी सी ,
दौलत मिलती रही ।
भिंगोता रहा बरसता रहा,
वो नूर बनकर ,
एक निग़ाह नूर की ,
यूँ रहमत मिलती रही ।
रही सामने मंजिल,
जो राह निग़ाहों में ,
"निश्चल"चाहत को ,
यूँ हसरत मिलती रही ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@..
डायरी 6(131)
चाहत/चाह/प्रेम
हसरत/कामना
कुछ इस तरह मुझे ,
शोहरत मिलती रही ।
मेरी वफ़ाओं की मुझे,
तोहमत मिलती रही ।
चलता ही रहा सफ़र ,
मंजिल के वास्ते ,
वक़्त से इस तरह ,
मोहलत मिलती रही ।
गुजरता रहा कारवां ,
राह-ऐ-ज़िंदगी में ,
अपनो से अपनी सी ,
दौलत मिलती रही ।
भिंगोता रहा बरसता रहा,
वो नूर बनकर ,
एक निग़ाह नूर की ,
यूँ रहमत मिलती रही ।
रही सामने मंजिल,
जो राह निग़ाहों में ,
"निश्चल"चाहत को ,
यूँ हसरत मिलती रही ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@..
डायरी 6(131)
चाहत/चाह/प्रेम
हसरत/कामना
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