बुधवार, 20 मार्च 2019

जिंदगी ख़ास सी ।

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एक आस सी ।
साँस साँस सी ।

बुत निग़ाह रही,
अधूरी प्यास सी ।

दरिया की रवानी,
बहती कयास सी ।

थम गया समंदर ,
मौजें भी पास सी ।

फ़ना हर लम्हा ,
जिंदगी ख़ास सी ।

.... विवेक दुबे"निश्चल"@....
डायरी 6(132)

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