बुधवार, 20 मार्च 2019

होरी खेले नंद को लाल ।

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केसर रंग लिए गुलाल ।
होरी खेले नंद को लाल ।

मारत भर भर पिचकारी ,
सखियाँ रंग डारी लाल ।

चुनार भींगी चोली भींगी ,
गुलाल मले सखी के गाल ।

झूम रहो है बरसानो सारो ,
ग्वाल बाल सब भये बेहाल ।

रंग गए सब श्याम रंग में ,
श्याम चले है ऐसी चाल ।

छूटे न ये रंग चड़ो जो ,
आती होरी अगली साल ।
...
फिर बरसी फुहारें फ़ागन की ।
भींगी कोरी चूनर साजन की ।
रच गया रंग तन और मन ,
मादकता नैनो में नैनन की ।
.... 
सखी चलते है बरसाने को ।
कान्हा के रंग रच जाने को ।
चल डूब चले श्याम रंग में ,
"निश्चल"श्यामल हो जाने को ।
    ......
"निश्चल"छंद रचे फागों के ।
 गीत लिखे कुछ हुरियारों पे ।
 मस्ती छाई जा फ़ागुन की ,
 सखी भींगे नयन फुहारों से ।...

....विवेक दुबे"निश्चल"@...
डायरी 6(134)



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