शनिवार, 27 जुलाई 2019

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774
आइनों में नुक़्स निकाले न गये ।
ऐब हमसे कभी सम्हाले न गये ।
कहते रहे हर बात बे-वाकी से ,
इल्ज़ाम बे-बजह उछाले न गये ।
..... .
775
आती सी ही रहीं बहारें , बहारों से ।
न बदला असमां,मौसम नजारों से ।
पहनकर लिबास ,   वो जिस्मों के ,
ठहरी रहीं रूहें,नए ज़िस्म दारों से ।
......
776
मिटते रहे निशां निशानों से ।
बहते रहे दर्या अरमानों से ।
रुत बदलते ही रहे मौसम ,
लाते रहे बहारें दीवानों से ।
....
777
तलाश को तलाश की तलाश सी ।
ज़िन्दगी नही फिर भी उदास सी ।
चलती रही मुसलसल सफ़र पर ,
लगाती रही हालात-ए-कयास सी ।

... विवेक दुबे"निश्चल"@.....
डायरी 3 

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कलम चलती है शब्द जागते हैं।

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