शनिवार, 27 जुलाई 2019

778/781

778
वो रुका रुका सा रहा ।
हर्फ़ हर्फ़ लिखा सा रहा  ।
क्यूँ धरती की चाहत में ,
वो आसमां झुका सा रहा ।
....
779
मैं पूछ बैठा चाहतें उसकी ,
वो गुजरा वक़्त चाहता रहा ।
मैं देखता रहा आदतें उसकी ,
वो हसरतों से ही हारता रहा ।
..... ....
780
अल्फ़ाज़ दख़ल डालता रहा ।
जिंदगी में ख़लल डालता रहा ।
ज़ज्बात भरे मासूम रिश्तों में ,
सूरत अस्ल नक़ल डालता रहा।
... ....
781
मुक़द्दर से मुक़द्दर बदलता रहा ।
साथ लिये मुक़द्दर यूँ चलता रहा ।
चढ़ता रहा सीढ़ियां हसरतों की ।
चाहत-ए-दर बंद सा मिलता रहा ।

........विवेक दुबे"निश्चल"@..
डायरी 3

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कलम चलती है शब्द जागते हैं।

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