782
वो लब्बोलुआब बता न सका ।
हुस्न-ओ-हिज़ाब उठा न सका ।
होती गई स्याह सुरमई शाम भी ,
चाँद रात का दामन हटा न सका ।
......
सारांश
....
वो इल्म क्यूँ भार सा रहा ।
वो हुनर से ही हारता रहा ।
क़तरे थे आब के आँखों मे ,
वो खमोश नज़्र निहारता रहा ।
..... ...
783
धोके से धोखा खाता रहा ।
तंज जमाने के पाता रहा ।
न बदल सका फ़ितरत अपनी,
इल्म दुनियाँ पे लुटाता रहा ।
... ..
784
बदलता गया मैं हालात सा ।
वक़्त से वक़्त के साथ सा ।
एक चाँद सा चला आसमां पे ,
शबनम का लिए अहसास सा ।
... ...
785
वो सच कहाँ था ,जो सच कहा था ।
मेरे ही रहबर ने,मुझको ही ठगा था ।
पढ़ता रहा जो क़सीदे शान में मेरी ,
लफ्ज़ लफ्ज़ जिनमे भरा दगा था ।
.....विवेक दुबे"निश्चल"@.....
डायरी 3
वो लब्बोलुआब बता न सका ।
हुस्न-ओ-हिज़ाब उठा न सका ।
होती गई स्याह सुरमई शाम भी ,
चाँद रात का दामन हटा न सका ।
......
सारांश
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वो इल्म क्यूँ भार सा रहा ।
वो हुनर से ही हारता रहा ।
क़तरे थे आब के आँखों मे ,
वो खमोश नज़्र निहारता रहा ।
..... ...
783
धोके से धोखा खाता रहा ।
तंज जमाने के पाता रहा ।
न बदल सका फ़ितरत अपनी,
इल्म दुनियाँ पे लुटाता रहा ।
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784
बदलता गया मैं हालात सा ।
वक़्त से वक़्त के साथ सा ।
एक चाँद सा चला आसमां पे ,
शबनम का लिए अहसास सा ।
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785
वो सच कहाँ था ,जो सच कहा था ।
मेरे ही रहबर ने,मुझको ही ठगा था ।
पढ़ता रहा जो क़सीदे शान में मेरी ,
लफ्ज़ लफ्ज़ जिनमे भरा दगा था ।
.....विवेक दुबे"निश्चल"@.....
डायरी 3
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