रविवार, 6 दिसंबर 2020

अभिलाषाओं की भोर

 आशाओं के एहसासों से ,

 अभिलाषाओं की भोर खिली ।

स्वप्न संजोने उज्वल कल के,

    साँझ किनारे रात मिली ।

गुजर चला जीवन जीवन मे से , 

"निश्चल" मन बनकर ,

दूर क्षितिज की स्वर्णिम आभा ,

 नव जीवन की आस बनी ।

....विवेक दुबे"निश्चल"@...

डायरी 7

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कलम चलती है शब्द जागते हैं।

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