रविवार, 6 दिसंबर 2020

मैं चलता रहा

मैं चलता रहा ।

वो चलाता रहा ।

जीवन से बस कुछ,

इतना ही नाता रहा ।

हँसता रहा हर दम ,

 दर्द होंठों पे सजाता रहा ।

 बाँट के खुशियां दुनियाँ को ,

दर्द दिल में छुपाता रहा ।

होती रही निगाहें नम ,

अश्क़ दरिया बहाता रहा ।

 जाता रहा दर पे रिश्तों के 

पर न किसी को भाता रहा ।

हो सके न मुकम्मिल रिश्ते ,

रिश्तों को रिश्तों से मनाता रहा ।

"निश्चल" बस बास्ते  दुनियाँ के ,

अपनो को अपना दिखाता रहा ।

....विवेक दुबे"निश्चल"@..

डायरी 7


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