रविवार, 6 दिसंबर 2020

एक नया भोर था ।

 ओर था न छोर था ।

हसरतो का दौर था ।

साँझ के मुक़ाम पे ,

एक नया भोर था ।

चाहतों की भीड़ में ,

हसरतों का शोर था ।

जीत की तलाश में ,

हार पे न गोर था ।

आने की आस में ,

 राह पे गोर था ।

वो ठहरा न पास में ,

जो न कोई और था ।

..."निश्चल"@...

डायरी 7

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